Thursday, December 17, 2009

घीसू और माधव

आजकल फिर प्रेम चंद का मशहूर कफ़न पढ़ना शुरू किया...जब मैं अपने देश में हिंदी पढ़ती थी, उस वक्त पहली मुलाक़ात हुई थी मेरी, घीसू और माधव से। लगता है कि प्रेम चंद के लफ्स बार-बार पढ़कर आजकल एक और, एक ख़ास, और पहले से अलग अहसास और असर मेरे अंदर पैदा करते रहते है। पढ़ने में, लगता है कि ज्यों-ज्यों घीसू और माधव अचानक असली व्यक्ति होते जा रहे हैं। जैसे उनकी शकल मेरे तरफ फोकस्ड हैं, जैसे मेरे तरफ देखते रहते है और घूरते रहते है, जैसे रोज़ मेरी तरफ होता है, जब मैं हजरतगंज या चौक या अमीनाबाद के मोहल्ले में घुमा करती हूँ। लगता है कि हर दिन मैं घीसू और माधव कि नज़र से मिलती हूँ, हज़ारों एकदम हिन्दुस्तानी आँखों से माधव और घीसू कि तस्वीर नजर आती हैं। यह तो एक बिलकुल पूरानी कहानी है, स्थितियां पूरानी, एक पुराना ज़माना और शायद एक पूर्व ज़माना...या यूं कहूँ "शायद ही एक पुराना या पूर्व ज़माना"

Tuesday, December 15, 2009

हमारी रानी का महल

मुझको नहीं पता कि लुक्नाऊ में एक रानी जीती थी। और उनका एक महल नहीं लेकिन दो महल थे । मैं सिर्फ एक अजनबी हूँ तो मैं जान नहीं सकती महाल कि अंदर सही-सही क्या क्या हो रहा है। फिर भी मुझको उत्सुकता हो रही है। बहार से मैं देखती हूँ कि महल के आसपास काफी मजबूत आदमी फिर रहे है, fancy and flashy अम्बसदोर गाड़ी चल रही हैं, काफी लोग अन्दर सफाई कर रही है और महाल पर बहुत कम हो रहा है।

हमारे यहाँ की कहानियें में, रानियाँ कभी ज़ालिम कभी अच्छी हो सकती हैं। अगेर वह ज़ालिम होती तो उनका ज़ुल्म कल्पना के बहार होता। आमतौर पर, fairytales में, ज़ालिम रानी की बेटी भी होती है, लेकिन वह हमेशा एक पूर्व पत्नी की है। वह बेटी बहुत खुबसुरत होती है, और आखिर में, उसके घोड़े पर चलते हुए वीर की मदद से ज़ालिम रानी की महल से बच सकती है।

Jungian psychology के मुताबिक, ज़ालिम रानी और मासूम बेटी, हमारे अंदर एकी हो सकेगी। यह evident मतलब है कि हम एकी वक्त में, ज़ालिम या/और मासूम हो सकते है, और औसी ही होना भी चाहियी।

हिन्दुस्तान में यह opposites एकी चीज़ में बहुत मिलतीं है - जैसे लुक्नाऊ - शानदार शहर है, इतनी सुंदर इमारतें या दिलचस्प धरोहर और इतिहास भी लेकिन एकी वक्त में, ज़बरदस्त इमारतों के पास कचिरा इधर-उधर फीका हुआ है। हिन्दुस्तान एक बिलकुल ज़बरदस्त, ज़ालिम, शानदार, गन्दा, खुबसूरत, पागल, बढ़िया, भयानक, बिंदास देश है। और क्या?

Thursday, November 26, 2009

सहारा माल की पहचान: आजकल हम मोदेर्ण हैं

लुख्नाओ का सहारा माल हमसे एक दिलचस्प खेल खेलता है। इस खेल को, में बहार-अन्दर का खेल बुला रही हूँ। अन्दर एक और दुनिया पड़ता है, बहार एक अन्दर से अलग दुनिया होता है। बहार घंडे मंग्नेवाल्ले बच्चे घूम रहे हैं, इधेर-उधेर गर्बिच है, गाय ऐसे ही घूम रही हैं, रिक्शावल्ले बहुत इनको लेने की जिद कर रहे हैं, ट्राफिक हेक्टिक है, आदमी आदमियां के समूह में hang-out कर रहे है और औरत आदमियां से seperately हो रहे हैं - जैसे कारीब पुरा हिन्दुस्तान में। अंदर एक दूसरी कहानी सुना जा रही है। मॉल के अन्दर सफाई राज कर रही है! ऐसे ही अन्दर जाना मुमकिन नहीं है। पहले आपके समान पड़ताल करना है। एक बहुत मजबूत और लम्बेवाल्लाह आदमी आपको भी खोजाएगा। कभी- कभी मैं सोच रही हूँ: मनो की एक रिक्शावल्ले को कुछ न कुछ खरीदने के लियी माल के अन्दर जाना चाहियी होगा। तो अन्दर जा सकेगा?
माल के अन्दर अक्सर हम देख सकते हैं की एक लड़का और एक लड़की हाथ-हाथ में घूम रहे हैं, जींस पेहेनते हैं, कोफ़ी पि रहे हैं, मक्दोनाल्ड्स खाना खाने जाते हैं, और Kentucky Fried Chicken भी। जब मैं अन्दर हूँ, अक्सर मैं भूल रही हूँ की मैं हिन्दुस्तान में हूँ। सब कुछ हमारे यहाँ की जैसे हैं। जब मैं फिर बहार जाऊं तो बहुत ताजुब हो रहा हैं मुजको। मैं एकदम हिन्दुस्तान में आ गयी हूँ। फिर रिक्षवाल्ले से मोल-भाव करना हैं, अन्दर fixed price हैं, बहार बिल्कुल नहीं हैं। माल एक प्रतीक हैं और आन्दार घुमने एक ख़ास पहचान देता हैं। या प्रतिक कहता हैं हम आजकल एकदम मोदेर्ण हैं और हमको मोदेर्ण लोगों की जैसे वह्वार करने की ज़रूरत हैं। हमको थूकना बिल्कुल नहीं होगा, कोने में सुसु नहीं करेंगे, मोल-भाव करना कोई ज़रूरत नहीं। अन्दर हम सभ्यतिक हैं - बहार जो भो हो।

Tuesday, November 24, 2009

मेरा बेक्ग्रौंद, मेरी पहचान

नमस्ते सलाम!
मैंने सोचा, राजीवजी से बात करके की अच्छी बात होगी आगर मैं अपने बक्ग्रौन्द के बारे में कुछ लिखूंगी।
चलो, ठीक है...तो मैं बेल्जियम की हूँ...लेकिन इतना आसान नहीं है - जैसे सब हिन्दुस्तानी लोगो के अलग-अलग पहचान भी है। भारत मैं लोग बिल्कुल हिन्दुस्तानी हैं लेकिन पंजाबी भी हो सकते हैं या बंगला या मुसलमान या हिंदू या ब्रह्मिन या क्षत्रिय या....काफी एदेंतितिस मौजूत होते हैं, इंडिया में।
मैं बेल्जियन हूँ लेकिन मेरी मतर्भाषा डच है, होल्लंद के लोगो की जैसे। बेल्जियम की तिन सरकारी भाषाएँ हैं: डच, फ्रेंच और जर्मन भी। बेल्जियम के डच बोलनेवल्ले लोग हम flemish कहते हैं। फ्लेमिश और डच लोग वहीं ज़बान बोलते हैं लकिन एकी लोग तो नहीं हैं। हालांकि मैं डच बोलती हूँ, मैं फ्रेंच इलाके में रह्नेवाल्ली हूँ।

हमारी कहानी इधेर ख़तम नहीं हो जा रही है। मेरे माँ-बाप यूनानी हैं। बीस मिलियन यूनानी लोग होते है दुनिया में लेकिन आधा यूनानी आबादी युनानिस्तान के बाहर रहते हैं : अमेरिका में, कनाडा मैं, ऑस्ट्रेलिया मैं और उत्तर यूरोपे में, जैसे मेरा परिवार।

जब मैं चोती थी हम लोग दो भाषाएँ इस्तेमाल करते थे और हम bi-lingual हैं।
तिन पीडीयां पहली मेरे खानदान यूनान से आ गये हैं और हालाँकि की हमको बिल्कुल अच्छी तरह यूनानी आती है हम लोग आजकल कभी-कभार आपस में यूनानी बोलते हैं । हम जनानी बोलते जब हम यूनान जाएंगे।
Western नज़र से देखा यूनान में यूरोप ख़तम हो रहा हैं और पूर्व से देखा यूनान में युरोपे शुरू होता है। मेरे बचपन में महसूस होता था की यूनान आधा-आधा एक Oriental मुल्क था: तोइलेट्स बिल्कुल asian थे, बहार रस्ते के बीच में streetvendors मिठाई भेज जाते थे, कबाब बहुत मिलते थे, ट्राफिक पागलपन था (और भी है) और यूनानी लोग मेहमाननवाज़ हैं लेकिन थोड़ा सा बेईमानी भी हैं। यूनान चार सौ साल तुर्की के एक हिस्सा था और लगता है की इसलियी यूनानी का संस्कृति एकदम east-west मिक्स्त culture है।
और शायद यह कारण है की मुजको हिन्दुस्तान में इतना अच्छा लगता है और इतना जल्दी adapt कर रही हूँ। आजकल, यूनान EC का मेम्बर है और बहुत westernised हो गया है। हिन्दुस्तान में यूनान की पूर्वी ओर से फिर मिल रही हूँ।

Monday, November 23, 2009

मेरा कुत्ता अम्बर


मेरा कुत्ते का नाम अम्बर है। उसकी उमर ६ हो रही है और वह एक बोर्डर कोल्ली है। बोर्डर कोल्ली कुत्ते बहुत सुचिल हैं और बहुत जाज्बादी भी। शायद आप लोगो के लियी यह बहुत आजीब लगता है, यहाँ तक की पागलपन मानते हैं, लेकिन मेरे लियी मेरे कुत्ते का भी एक सख्सियत है। जैसे बहुत जलन है, जब मैं अपने और जानवारों को भी ख्याल दे रही हो। बहुत सेंसीटिवे है और उसको सिर्फ़ अच्छा खाना पसंद है।

इसकी रंग काला और सफ़ेद हैं। उसको tapped होना बहुत अच्छा लगता है और उसके आलावा एक मेहाम्नावास कुत्ता भी है। अगर कोई न कोई मुसाफिर या मेहमान आएं तो अम्बर इनता बहुत खुस हो जाएँ। पहले सब घरेलु जानवरों की जिमेदारी भी थीं। और बोर्डर कल्ली की जिमेदारी बकड़ीयां और भीत पकड़ने है।

हमारे यहाँ के लोग आम तौर पर अपने कुत्ते के साथ स्कूल जा रहे है - यह हम dogtraining बोलते हैं। स्कूल जाकर कुत्ते नोर्मल्ली अच्छी तरह सुनता है करता है जो भी चीज़ आप मांगते हैं।

Wednesday, November 18, 2009

हिंदी प्रोजेक्ट्स


खुशी की बात है की मैं लुख्नाओ में हूँ. मिलनसार और सुशील लोगो के आपुस में रहनेवाल्ली हूँ । और काम करती हूँ।

यह मेरा बिंदास हिंदी ब्लॉग है। उसमें मैं आपने आलग-आलग हिंदी प्रोजेक्ट्स के बारे में लिखूंगी.

पहली जगह, मेरा इन्तेर्न्शिप इ-नेक्स्ट से. मैं बहुत खुश हूँ की मैं इन लोगो के साथ इन्तेर्न्शिप कर सकती हूँ: Thank you, Guys

दूसरी जगह, मैं हिंदी की distance education course बना रही हूँ, डच बोल्नेवाल्ले लोगों के लिए, इसके बारे में मैं भी लिखौंगी

बेल्गियम में मैं interpretation का काम भी करुँगी
अगर कोई सलाह देना चाहे या ख्याल देना, कृपया बिल्कुल दिजियी। ये बात मेरी मदद कर सकतीं हैं!
और अगर कोई "follower" हो जाना चाहे, आपका स्वागत है

Cheers,
जिओर्गिया