लुख्नाओ का सहारा माल हमसे एक दिलचस्प खेल खेलता है। इस खेल को, में बहार-अन्दर का खेल बुला रही हूँ। अन्दर एक और दुनिया पड़ता है, बहार एक अन्दर से अलग दुनिया होता है। बहार घंडे मंग्नेवाल्ले बच्चे घूम रहे हैं, इधेर-उधेर गर्बिच है, गाय ऐसे ही घूम रही हैं, रिक्शावल्ले बहुत इनको लेने की जिद कर रहे हैं, ट्राफिक हेक्टिक है, आदमी आदमियां के समूह में hang-out कर रहे है और औरत आदमियां से seperately हो रहे हैं - जैसे कारीब पुरा हिन्दुस्तान में। अंदर एक दूसरी कहानी सुना जा रही है। मॉल के अन्दर सफाई राज कर रही है! ऐसे ही अन्दर जाना मुमकिन नहीं है। पहले आपके समान पड़ताल करना है। एक बहुत मजबूत और लम्बेवाल्लाह आदमी आपको भी खोजाएगा। कभी- कभी मैं सोच रही हूँ: मनो की एक रिक्शावल्ले को कुछ न कुछ खरीदने के लियी माल के अन्दर जाना चाहियी होगा। तो अन्दर जा सकेगा?
माल के अन्दर अक्सर हम देख सकते हैं की एक लड़का और एक लड़की हाथ-हाथ में घूम रहे हैं, जींस पेहेनते हैं, कोफ़ी पि रहे हैं, मक्दोनाल्ड्स खाना खाने जाते हैं, और Kentucky Fried Chicken भी। जब मैं अन्दर हूँ, अक्सर मैं भूल रही हूँ की मैं हिन्दुस्तान में हूँ। सब कुछ हमारे यहाँ की जैसे हैं। जब मैं फिर बहार जाऊं तो बहुत ताजुब हो रहा हैं मुजको। मैं एकदम हिन्दुस्तान में आ गयी हूँ। फिर रिक्षवाल्ले से मोल-भाव करना हैं, अन्दर fixed price हैं, बहार बिल्कुल नहीं हैं। माल एक प्रतीक हैं और आन्दार घुमने एक ख़ास पहचान देता हैं। या प्रतिक कहता हैं हम आजकल एकदम मोदेर्ण हैं और हमको मोदेर्ण लोगों की जैसे वह्वार करने की ज़रूरत हैं। हमको थूकना बिल्कुल नहीं होगा, कोने में सुसु नहीं करेंगे, मोल-भाव करना कोई ज़रूरत नहीं। अन्दर हम सभ्यतिक हैं - बहार जो भो हो।
About Me
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Aap ka observation bilkul sahihai
ReplyDeleteबहुत खूब जोर्जिया ! जो आपने लखनऊ में देखा वो दो दुनियां हैं. साथ साथ चलती. हमारा सब बाहर जैसे हैं और भीतर जैसे होना चाहते हैं.
ReplyDeleteआप ने अच्छी परख की है। हर पुरानी सभ्यता इस transition से गुजर रही है और confusion के बावजूद रास्ता निकाल रही है ताकि बाहर भीतर एक सा हो सके।
ReplyDeleteपहली बार ब्लाग पर आयी और इतनी अच्छी रचना पढने को मिली धन्यवाद और शुभकामनाये
ReplyDeleteभारत ईक्कीसवीं शती में नहीं, इक्कीस शतियों में एक साथ रह रहा है और सबके दर्शन यहां हो सकते हैं। मुझे स्वयं को यह लगता है कि मैं समय के कई चरणों में एक साथ रह रहा हूं।
ReplyDeleteभारत की अनुभूति बहु आयामी है।
मॉल के अन्दर और बाहर अलग अलग प्रकार का भारत है, पर है भारत ही।
आपके लेखन का स्वागत!
SWAGAT HAI AAPKA ....
ReplyDeleteACHAA LIKHA HAI AAPNE ... JAROORAT HAI ITNI VISHAAL SABHYATA KO VISTRAT ROOP SE DEKHNE KI ...
स्वागत!
ReplyDeleteसमाज की दो ध्रुवीय सच्चाई से रूबरू हो रही हैं आप।
ReplyDeleteदो अलग-अलग दुनियाएं।
अब यह बात अलग है कि बाहरी ज़मीनी हालातों से बावस्ता होते हुए भी कोई अंदर की दुनिया को कितना सभ्य कह सकता है।
स्वागत आपका, समाज के इन्हीं अंतर्द्वंदों को बखूबी प्रदर्शित करते और जूझते हमारे भारतीय हिंदी जगत में।
जोर्जिया जी,
ReplyDeleteसही पकड लिया आपने....माल के अन्दर हम बिलकुल अलग बन जाते हैं क्योंकि वहां हम पर कुछ अनुशासन या प्रतिबन्ध होता है....लेकिन बाहर तो पूरी छूट होती है न इसलिए कोई भी कुछ भी कर सकता है....माल के अन्दर लोग सिर्फ मोडर्न बन्ने का स्वांग करते हैं बाहर आते ही असलियत में आ जाते हैं.....इस तरह की साफ़ सफाई किसी के कहने पर कुछ देर ही बरती जा सकती है......सही मायने में सफाई तो जब तक दिल में न आये कोई नहीं रख सकता......
अच्छा लगा आपके बारे में जानकार.....आगे भी आपको पढ़ते ही रहेंगे....
धन्यवाद...
आप हिन्दी में लिखने की कोशिश कर रही हैं यह देख कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
एक अनुरोध -- कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन का झंझट हटा दें. इससे आप जितना सोचते हैं उतना फायदा नहीं होता है, बल्कि समर्पित पाठकों/टिप्पणीकारों को अनावश्यक परेशानी होती है. हिन्दी के वरिष्ठ चिट्ठाकारों में कोई भी वर्ड वेरिफिकेशन का प्रयोग नहीं करता है, जो इस बात का सूचक है कि यह एक जरूरी बात नहीं है.
ReplyDeleteवर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिये निम्न कार्य करें: ब्लागस्पाट के अंदर जाकर --
Dahboard --> Setting --> Comments -->Show word verification for comments?
Select "No" and save!!
बस हो गया काम !!
बहुत अच्छे जॉर्जिया ..यह बिलकुल साफ शब्दो मे अपने अपने मन की बात कही है ..और इसमे कही भी यह कोशिश नही है कि आपको कुछ ब्लॉग मे लिखना है ..ऐसे ही लिखती रहे ..विचार लिख्नना ज़्यादा जरूरी है भाषा अपने आप आ जायेगी ।
ReplyDeleteशुभकामनाएं...
ReplyDeleteगिरिजेश जी ने आपके ब्लॉग का लिंक दिया उसके लिये उनका धन्यवाद देना चाहूँगा। जॉर्जिया, आपकी हिंदी काफी आकर्षक है। उसमें जॉर्जियन फ्लेवर देने से उसमें अलग ही कशिश आ गई है।
ReplyDelete@ आदमी आदमियां के समूह में hang-out कर रहे है और औरत आदमियां से seperately हो रहे हैं .......
बढिया Indo-georgian फ्लेवर है।
जोर्जिया , हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है
ReplyDelete..मेरे ढेरों स्नेहाशीष
- लावण्या
गिरिजेश 'जी' (एक आदर सूचक हिन्दी सफ्फिक्स ! ) ने आपका परिचय दिया ! आप हिन्दी में अपने विचारों को अभिव्यक्त कर रही हैं यह खुशी की बात है !
ReplyDeleteआपका स्वागत है !
हम भी गिरिजेश जी की अनुशंसा से ही देख पाये इस ब्लॉग को ।
ReplyDeleteआपका स्वागत है हिन्दी लेखन में । आभार ।
आपका हिन्दी में लिखने का प्रयास सराहनीय है। थोड़े अभ्यास से आरम्भिक त्रुटियाँ भी दूर हो जायेंगी। आपका भारत और इण्डिया का ऑब्जर्वेशन काफी हद तक सही है। एक भारत और है जिसका दर्शन आप गावों में कर सकतीं हैं लेकिन चीजें वहाँ भी तेजी से बदल रही हैं। पाश्चात्य प्रभाव यहाँ की संस्कृति की उपरी सतह को प्रभावित कर रहा है लेकिन भीतरी सतह वैसी ही लगती है।
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है। बहुत बढ़िया प्रयास है।
ReplyDeleteसही कहा आपने लोंगो को मौका मिलने की देरी है कुछ भी कर सकते है।